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Advertising on the Telegram channel «💠✨सनातन रहस्य✨ 💠»
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💠✨ सनातन रहस्य ✨ 💠
टेलीग्राम शैली में सनातन भगवान, योगी, महान विचारक और किंवदंतियों, सृजन, विज्ञान और उद्धरणों का आनंद लें! तंत्र, यंत्र, मंत्र, औषधि और लगभग हर सनातन सामग्री। प्रेरणा का विस्फोट! 🔥🔥
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73
14:54
15.04.2025
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हे देवेशि ! वह लीला समय समय पर आविर्भूत हो जाती है। अब मैं उस समयः का विवेचन करूंगा। आप एकाग्रमन से सुने ॥ २१ ॥
परमाणुद्वयमणुः त्रसरेणुः त्रिभिश्च तैः । त्रयरेणत्रयेणेव कालः स्यात् त्रुटितसंज्ञितः ॥ २२ ॥
दो परमाणु का एक अणु और तीन अणुओं का एक त्रसरेणु होता है। तीन असरेणु से काल की गणना आरम्भ होती है ।। २२ ॥
स्मृतः । तच्छतेन भवेद्वेधः त्रिभिर्वेधलंवः निमिषस्त्रिलर्वेदेवि क्षणो ज्ञेयस्त्रिभिश्च तैः ॥ २३ ॥
उस षसरेणु का सौ से वेष ( जितने देश में सौ षसरेणुओं का मेल) होता है और तीन वेध से एक 'लव' होता है। तीन लवों का एक 'निमिष' होता है। हे देवि ! तीन निमषों का एक क्षण होता है ॥ २३ ॥
#maheshwar #tantra #shiv
118
14:49
15.04.2025
139
12:04
15.04.2025
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स्त्रीणामपि परो धर्मः पतिशुश्रूषणं च यत् । कायेन मनसा वाचा ततोऽन्यन्नास्ति किञ्चन ।। ३० ।।
भगवान महेश्वर ने कहा, स्त्रियों का भी श्रेष्ठ धर्म शरीर से, मन से और वाणी से पति की सेवा-सुश्रूषा करना ही है। अतः उस (पति) से बढ़कर उनके लिए कुछ भी नहीं है जो स्त्री पतिधर्म में परायण है वह इस प्रकार पातिव्रत्य का आचरण करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करती है।
#maheshwar #tantra #shiv
156
10:02
15.04.2025
शवासन :-
शवासन में शरीर पूरी तरह स्थिर और शिथिल होता है, जिससे मन और प्राण की गति शांत होती है। यह अवस्था प्राणायाम और ध्यान के लिए आधार तैयार करती है।इस मुद्रा में साधक अपनी सांसों को गहरा और नियंत्रित करता है, जिससे प्राणवायु (जीवन ऊर्जा) का प्रवाह सुगम होता है।
प्राण का कपाल में प्रवेश: कपाल यहाँ प्रतीकात्मक रूप से मस्तिष्क या उच्च चक्रों (आज्ञा चक्र या सहस्रार चक्र) को दर्शाता है। तांत्रिक साधनाओं में, प्राण को निम्न चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, आदि) से ऊपर की ओर ले जाया जाता है।शवासन में साधक अपनी सांसों को इतना सूक्ष्म करता है कि प्राण नाड़ियों (इड़ा, पिंगला, और सुषुम्ना) के माध्यम से ऊपर की ओर प्रवाहित होता है।विशेष रूप से सुषुम्ना नाड़ी में प्राण का प्रवाह कुंडलिनी को जागृत करता है, जो कपाल (सहस्रार) तक जाती है। सहस्रार में कुंडलिनी का शिव से मिलन परमानंद की अवस्था देता है।प्रक्रिया:शवासन में लेटने के बाद, साधक पहले शरीर के प्रत्येक अंग को शिथिल करता है।फिर सांस को गहरा और लयबद्ध करते हुए ध्यान भ्रूमध्य (आज्ञा चक्र, माथे के बीच) या सहस्रार (सिर के शीर्ष) पर केंद्रित किया जाता है।कुछ तांत्रिक प्रथाओं में, विशिष्ट मंत्र (जैसे ॐ, ह्रीं, या क्लीं) का जप या नाद ध्यान (आंतरिक ध्वनि पर ध्यान) किया जाता है, ताकि प्राण को कपाल में ले जाया जाए।प्राण के साथ-साथ कुंडलिनी शक्ति को भी क्रमशः चक्रों के माध्यम से ऊपर ले जाया जाता है, जो अंततः सहस्रार में शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है।
जब प्राण कपाल (सहस्रार) में स्थिर होता है, साधक को परमानंद (सर्वोच्च आनंद), चित्त की शांति, और आत्म-साक्षात्कार की अनुभूति होती है।
#yoga #meditation #savasana #aasan #asan #shiv #naad #yoga
270
02:32
14.04.2025
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ॐ सर्वं विश्वेन संनादति परमानंदमयं जगत्।चिदानंदमयी शक्तिः सर्वं विश्वे प्रकाशति।
अर्थ: सारा विश्व परमानंद की ध्वनि से गूंजता है; यह जगत आनंदमय है। चेतना और आनंद से युक्त शक्ति ही विश्व को प्रकाशित करती है।
क्लीं श्रीं संनादति यत्र परमानंदं तत्र वै।
अर्थ: जहाँ क्लीं और श्रीं मंत्र संनाद करते हैं, वहाँ परमानंद होता है,क्लीं (कामना) और श्रीं (समृद्धि) बीज मंत्र साधक को आनंद और पूर्णता की ओर ले जाते हैं।
#parmanand #tantra
251
01:54
14.04.2025
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सर्वं विश्वे समायाति यत्र परमानंदं तत्।
अर्थ: वह स्थान जहाँ सारा विश्व समा जाता है, वही परमानंद है।
#parmananad #tantra
266
14:42
13.04.2025
महाकाल संहिता एक महत्वपूर्ण तांत्रिक ग्रंथ है, जो मुख्य रूप से महाकाली और उनके विभिन्न रूपों, विशेष रूप से गुह्यकाली और कामकलाकाली, की उपासना, साधना, और तांत्रिक विधियों पर केंद्रित है। यह ग्रंथ वामाचार और दक्षिणाचार दोनों तांत्रिक परंपराओं से संबंधित है और माना जाता है कि इसे आदिनाथ द्वारा 10वीं शताब्दी में रचित किया गया था। यह ग्रंथ कई खंडों में विभाजित है, जिनमें तांत्रिक साधनाओं, मंत्रों, यंत्रों, और पूजा-विधियों का विस्तृत वर्णन है। नीचे मैं महाकाल संहिता के प्रमुख विषयों और सामग्री को संक्षेप में प्रस्तुत करता हूँ, जो उपलब्ध जानकारी और सामान्य तांत्रिक संदर्भों पर आधारित है।
महाकाल संहिता में क्या-क्या है?
1. महाकाली और उनके रूपों की उपासना:
- ग्रंथ का मुख्य ध्यान महाकाली पर है, जो तांत्रिक परंपरा में सर्वोच्च शक्ति मानी जाती हैं। इसमें उनके 51 विभिन्न रूपों (जैसे गुह्यकाली, कामकलाकाली, आदि) का वर्णन है।
- प्रत्येक रूप के लिए विशिष्ट मंत्र, यंत्र, और पूजा-विधियाँ दी गई हैं।
- उदाहरण: गुह्यकाली खंड में गुह्यकाली की गुप्त साधनाएँ और मंत्रों का वर्णन है, जबकि कामकला खंड में कामकलाकाली की साधना और तांत्रिक रहस्य शामिल हैं.
2. तांत्रिक मंत्र और बीज मंत्र:
- इसमें विभिन्न मंत्रों (जैसे ह्रीं, क्लीं, ऐं) और उनके संयोजनों का उल्लेख है, जो साधना के लिए उपयोगी हैं।
- मंत्रों के साथ-साथ उनके जप की विधियाँ, संख्या, और सिद्धि के नियम बताए गए हैं।
- कुछ मंत्र जीवनमुक्ति, सुरक्षा, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए हैं, जैसे महामृत्युंजय मंत्र से प्रेरित स्तोत्र।
3. यंत्र और तांत्रिक चित्र:
- विशिष्ट यंत्रों (जैसे श्री यंत्र, काली यंत्र) का निर्माण, पूजन, और उपयोग का वर्णन।
- यंत्रों को साधना में कैसे शामिल करना है, इसकी विस्तृत जानकारी।
4. कुंडलिनी और चक्र साधना:
- कुंडलिनी जागरण और सहस्रार तक उसकी प्रगति पर जोर।
- विभिन्न चक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, आदि) पर आधारित साधनाएँ और उनके आनंदमय प्रभावों का वर्णन।
5. वामाचार और दक्षिणाचार विधियाँ:
- वामाचार (गोपनीय और गूढ़ साधनाएँ) और दक्षिणाचार (नियमबद्ध और शुद्ध उपासना) दोनों का समावेश।
- इसमें पंचमकार (मांस, मद्य, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) से संबंधित प्रतीकात्मक और वास्तविक साधनाएँ शामिल हो सकती हैं, जो सावधानी और गुरु मार्गदर्शन की माँग करती हैं।)
6. स्तोत्र और कवच:
- महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र जैसे स्तोत्र, जो भक्तों को भय, रोग, और मृत्यु से मुक्ति दिलाने के लिए हैं।
- विभिन्न कवच (रक्षा मंत्र) जो साधक की सुरक्षा के लिए हैं।
7. साधना के नियम और चेतावनियाँ:
- ग्रंथ में बार-बार जोर दिया गया है कि तांत्रिक साधनाएँ गुरु के मार्गदर्शन के बिना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि गलत अभ्यास से हानि हो सकती है।
- साधना के लिए शुद्धता, समय, और स्थान के नियमों का उल्लेख।)
8. शिव-शक्ति का मिलन:
- शिव (चेतना) और शक्ति (ऊर्जा) के मिलन पर आधारित तांत्रिक दर्शन।
- यह मिलन परमानंद (सर्वोच्च आनंद) की अवस्था तक ले जाता है, जो तंत्र का अंतिम लक्ष्य है।
9. कामकला और तांत्रिक रहस्य:
- कामकला खंड में प्रेम, सृजन, और आनंद से संबंधित तांत्रिक रहस्यों का वर्णन है।
- इसमें श्रीविद्या और अन्य गूढ़ परंपराओं के तत्व शामिल हो सकते हैं।
10. ऐतिहासिक और दार्शनिक विवरण:
- ग्रंथ में तांत्रिक परंपराओं का ऐतिहासिक संदर्भ और उनका विकास।
- आदिनाथ द्वारा रचित होने के कारण, यह कश्मीर शैववाद और अन्य तांत्रिक स्कूलों से प्रेरित हो सकता है।
#mahakal #samhita
277
14:39
13.04.2025
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